चाणक्य नीति पर आधारित दोहे
*चाणक्य नीति*(दोहे)
शत-शत तीर्थ-नहान से,मन की मैल न जाय।
मय-घट निर्मल हो नहीं,अनल-दाह करवाय।।
काम-क्रोध-निद्रा प्रचुर,सेवा-भाव,श्रृंगार।
कौतुक-लोभ व स्वाद अपि,छात्र-त्याग के सार।।
पिता-ज्ञान,सच मातु का,पत्नी-शांत-स्वभाव।
धर्म भ्रात,सुत की क्षमा,मित्र-दया,छःजुड़ाव।।
पर स्त्री को मातु सम,पर धन ढेला जान।
सबमें निज को जो लखे,पंडित वही महान।।
बूँद-बूँद से घट भरे,संचय कर्म सुजान।
विद्या-धन अरु धर्म का,संचय-व्रत अब ठान।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Sushi saxena
14-Feb-2024 05:27 PM
Very nice
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Mohammed urooj khan
08-Feb-2024 11:48 AM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Shnaya
07-Feb-2024 07:20 PM
Nice
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